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Showing posts from 2016

तो, देशभक्ति खुद डूबने डूबाने लगी.

भ्रम की दवायें असर दिखाने लगी, अंधभक्ति , हर घर से आने लगी. अपने अपने राष्ट्रवाद पर हुआ विवाद, तो, देशभक्ति खुद डूबने डूबाने लगी. मैने अपना लहजा, जरा सा गर्म किया, वह तो उठी, और महफिल से जाने लगी. कभी मेरे पास,उसे कह रही थी फरामोश, अब,खुद ही आजमाईश करने कराने लगी.                                

क्या नोटबंदी से गरीबी में मंदी आयेंगी मोदीजी?

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  हाल ही में मोदी सरकार के एक बहुत बड़े फैसले जिसमें 500 और 1000 के नोटों को बंद कर दिया गया, ने पुरे भारत में हड़कम्प मचा के रखा हुआ है. जहाँ सरकार के साथ खड़े लोग इसे एक ऐतिहासिक फैसला बताते हुये इसे कालेधन पर मोदी की सर्जिकल स्ट्राईक बता रहे है वहीं विपक्ष का रवैया इससे बिल्कुल अलग थलग नजर आ रहा है. नोटबंदी के बाद से सोशल साइट्स, टेलिविजन, अखबार आदि सभी सूचना के माध्यम इससे होने वाले नफे नुकसान पर अपने अपने विचारों को रख रहे है. देश का उच्चवर्गीय खेमा जिसे इस फैसले से सबसे ज्यादा ठेस पँहुची है(ऐसा सरकार और उनके समर्थकों का मानना हैं) जिनके पास काले धन का अंबार लगा था  वह भी धीमें स्वर में लेकिन बड़ी तत्परता के साथ सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहा है. लेकिन एक दुसरा निम्नमध्यमवर्गीय खेमा भी हैं जो  अपने दैनिक रोजगार को छोड़ घंटो लाईनों में लगकर भी सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहा है, ये सोचते हुये कि हर बार गरीब ही क्यों सरकार की कठपुतली बनती है हमेशा ? हर बार देश का गरीब तबका ही क्यों दंश झेलता है ? हर बार सरकार के किसी भी फैसले का उपहास का पात्र गरीब ही क्यों

गज़ल

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सियासत में जरूरी है रवादारी....समझता है??

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गरीबी अशिक्षा भ्रष्टाचार आदि को सिरे से खारिज कर देने के वायदों के साथ लोगों के दिलों में बहुत तेजी से विश्वास घोलने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रही है,जिस जनलोकपाल और भ्रष्टाचार को हथकण्डा बनाकर लोगों के दिलों में जो विश्वास आम आदमी पार्टी ने कायम किया था,वह महज अब एक ढकोसला साबित होते जा रहा है. जिन लोगों ने जनता को यकीन दिलाया था कि वे एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत की नींव स्थापित करेंगे वे लोग खुद उलुल जलुल बयानबाजी या महिला उत्पीड़न के केस में शामिल होकर जनता के अनदेखे विश्वास पर पानी फेरे जा रहे है. अरविंद केजरीवाल का रूख धीरे धीरे धुर विरोधी बनता जा रहा है,हर मसले पर अब केजरीवाल केन्द्र को निशाना बना रहे है,केन्द्र के हर अच्छे काम पर भी केजरीवाल की बयानबाजी उनके व्यक्तित्व को परिभाषित कर रही है. अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में ही आम आदमी पार्टी अपनी इतनी भद्द पिटवा चुकी है जितनी तो विपक्ष की अन्य पार्टियों ने भी नही पिटवाई थी. डेढ़ साल में ही पार्टी के आधे मंत्री हटाने पड़े,करीब दो दर्जन विधायक आपराधिक मामलों में पूलिस के घेरे मे

गुल्लक और उसके पांच सिक्के

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कुछ ही महीनो पहले की बात है एक नई नई सी गुल्लक कमरे में दाखिल हुई थी, या यह कहे की कोई ईश्वर का फरिश्ता उस गुल्लक को उस एक कमरे में छोड़कर चला गया था.अब गुल्लक कमरे में आयी तो  धीरे धीरे उसमें सिक्के भी आना शुरू हुआ। पहला सिक्का मैं स्वयं था, जो उस गुल्लक में प्रवेश हुआ था, मेरी हैसियत केवल एक मेलोडी खरीदने लायक थी ,क्योंकि मैं था ही एक रुपये का सिक्का ! वह जो गुल्लक थी अंदर से आम गुल्लकों की तुलना में काफी गहरी थी,उसमे मेरे जैसे तकरीबन 500-1000 सिक्के आ सकते थे, वह अलग बात थी की गुल्लक का प्रेम शायद कुछ ही सिक्कों से था या यह कहे की गुल्लक अपने अंदर केवल पाँच सिक्कों को ही रखना चाहती थी , और वह भी एक एक रुपये के पाँच सिक्के। जो अन्य 4 सिक्के थे वह भी मेरी तरह ही एक रुपये वाली या शायद एक रूपये से ज्यादा की हैसियत रखते थे। अब जैसे ही गुल्लक में पाँचों सिक्के एक साथ हुए उनमे आपस में लगाव बढ़ने लगा यह देखकर गुल्लक बहुत खुश हुई, गुल्लक को लगा मेरे अंदर रहने वाले ये सिक्के बहुत खुश है और उन सिक्को की ख़ुशी देखकर गुल्लक मन ही मन खुश होती रही। कुछ ही समय में सिक्के और गुल्लक में इतनी ज्याद

भोपाल से बुदनी घाट

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अचानक सेन्ट्रल लाइब्रेरी से GST पर व्याख्यान सुनने के बाद हमारा प्लान बना कि आज रात भर कहीं घुमा जाये,तो तय हुआ कि बुदनी घाट चलकर नर्मदा नदी को निहारा जाये. हम लोग तकरीबन रात को 9 बजे भोपाल से होशंगाबाद के लिये रवाना हुये, रास्ते में चलते चलते पिछले कुछ दिनों का मानसिक दबाव हल्का लो चला था, हम लोग आजाद महसूस कर रहे थे,गाड़ी को सामान्य रफ्तार में चलाते हुये हम लोग कुमार विश्वास के मुक्तक और जान एलिया,इब्ने इंशा,नूसरत साहब के शेर एक दुसरे को सुनाते जा रहे थे, जब जान एलिया का यह शेर पढ़ा कि- “ कितने ऐश उड़ाते होंगे, कितने इतराते होंगे. जाने कैसे लोग वो होंगे जो उसको भाँते होंगे. कुछ तो जिक्र करो तुम यारों उसकी कयामत बाहों का, वो जो उनमे सिमटते होंगे वो तो मर जाते होंगे... ” तो एक अजीब सी मुस्कुराहट चेहरे पर ऊभर आयी. धीरे धीरे हमारी गाड़ी मण्डीदीप पहुँची जहाँ ठहर कर हमने चाय पी और उस चाय वाले के दर्द को महसूस किया,बंदा तीन बार से एक ही एक गाना बजाये जा रहा था कि - दोस्ती इम्तेहान लेती है.., चाय पीते पीते कुछ समय के लिये लगा कि कहीं यह चाय वाला हमारे ऊपर तो कटाक्ष नही कर र

नई कविता या नहीं कविता

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स्वतंत्रता के बाद से हिन्दी साहित्य में जो नई कविता का युग प्रारंभ हुआ , कहा गया कि प्रयोगवाद के बाद जो कविता की नवीन धारा विकसित हुई वह नई कविता हैं। इस नई कविता के युग में रची जाने वाली रचनाधर्मिताओं का आधार बिम्ब , समाज , संस्कृति , देशप्रेम , सौन्दर्य बोध , प्रकृति आदि हैं ऐसा माना जाता आ रहा हैं कि इस युग के रचनाकारों ने परम्पराओं को दरकिनार कर प्रगतिशील रचना की पैठ स्थापित की थी। अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित -"द्वितीय तारसप्तक" हो या फिर इलाहाबाद की साहित्यिक संस्था ' परिमल ' के द्वारा प्रकाशित "नई कविता" पत्रिका हो , जिनसे ही इस युग की नींव स्थापित हुई थी। धीरे धीरे इस नई कविता के युग में परिवर्तन ही परिवर्तन नज़र आये , जो रचनाधर्मिता इस युग के प्रारंभ में देखने को मिली आगे चलकर वह और प्रभावी बनती गई लेकिन अब इतना आगे निकल आयी की उसका प्रभाव समाप्त हो गया। अज्ञेय , मुक्तिबोध , भवानीप्रसाद मिश्र आदि के बाद दुष्यंत कुमार के बाद जयकुमार जलज , श्रीराम परिहार आदि ने इस युग को बढ़ाने में बखुबी योगदान दिया। लेकिन ये कविताएँ केवल बौद्धिक लो

यूँ ही फिक्र सी लगी हैं..

यूँ ही फिक्र सी लगी हैं.... जिक्र भी नहीं हैं अब.. किस्सा ए कहानी में कहीं, न तो नज़र आती हैं वो नज्म या तराने में कहीं .... फिर भी फिक्र सी लगी है... जिक्र भी नहीं हैं कहीं ... उन कल्पनाओं का जो कभी हिल्लोरे खाकर दिल में उठा करती थी। गाँव की उस पगडंडी पर चलते चलते। जो मुझे नदियों और खेतों की ओर ले कर जाती थी। खैर!!! वह स्वर्ग ही नही है अब ,तो जिक्र भी नहीं हैं अब.... फिर भी, फिक्र सी लगी हैं.... @☆ ‪#‎ बेख़बर‬ ...

जरा गौर से सुनो!!!

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सुनो! आहट तो सुनो जरा, कोई दस्तक दे रहा है मेरे!!! मेरे इस सुने घर में कोई खलल डाल रहा है मेरी आंतरिकता मे स्थित मेरे मस्तिष्क की गहराईयों में ! ! ! जरा गौर से सुनो!!! किसी की दबिश सुनाई दे रही हैं तुम्हें ! अपने हृदय के नयन पटलो को खोलो और अपने चक्षु को केन्द्रित करो तुम देखोगी किसी की दस्तक को महसुस करोगें उस आहट को जो जो मुझे तुमसे दुर किये जाने के लिये आयी थी।

"कभी गाड़ी नाव पर तो कभी गाड़ी पर नाव"

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क्यों रें अज्जू--- क्या हो रहा हैं आजकल, सुना हैं सरकार आकडो से देश की प्रगति के अंदेशे का झूठा जामा पहना रही हैं। कह रही हैं कि हम प्रगति के अविरल पथ पर लगातार चलायमान हो रहै हैं । क्या सत्यता हैं भई इसमें जरा बताओ तो?? अज्जू- हाँ भाई सुनने मे तो अभी यही आ रहा हैं कि हमारी ग्रोथ बढ़ रही हैं,बड़े बड़े अखबार और पत्रिकाओं मे तो यही छप रहा हैं कि हम उत्थान के पथ पर है। आकडो से भविष्य की नीव रखी जा रही है भाई वर्तमान के परिदृश्य को सापेक्ष रखकर। वर्तमान के परिदृश्य को सापेक्ष रखकर?? तनिक विस्तार से बताओ भाया कैसे ? अज्जू- देख भाई ऊ का हैं न कि आजकल हमारे देश मे आकडो और तथ्यों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा बजाय शुरूआती विकास और ग्रामीण क्षेत्रों मे हो रहै निवेश को छोडकर। ग्रामीण क्षेत्रों मे निवेश ??? यह क्या बोल रहै हो भाई कोन सा निवेश हुआ है ग्रामीण क्षेत्र मे ?? अज्जू-- अरे!ऐसा हमारी सरकार कह रही हैं भ्राता, आजकल क्या अखबार वखबार पढ़ना छोड़ दिये हो का तुम जो ऐसे चकराय रहै हो ग्रामीण क्षेत्रों मे निवेश की बात सुनकर? अरे हाँ ऊ बहुत दिन हो गया हैं न परीक्षा के चलते अखबार पर नजर ही नहीं डा

संवाद: साहित्य- कहानी -: भ्रम में दोस्ती

संवाद: साहित्य- कहानी -: भ्रम में दोस्ती : यूँ ही काँलेज दिनों की बात हैं, नया नया काँलेज शुरू हुआ था, देश के बहुत से राज्यों से विद्दार्थी विद्दाध्ययन के लिये आये हुए थे। विशाल भी उ...

मुक्तक

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एक मुक्तक युँ ही चलते चलते................ कहने को मोहब्बत जब कभी , कमरे की चार दीवारी में देखो , कैसे घुटती रहती , किसी मर्दानी बाँहों में झूठी तोहमत झूठे वादे झूठी सब कहानी होती है यारों यह कोई इश्क़ नहीं , फरेबी जवानी होती है।

विचारधारा और राष्ट्र

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बहुत पहले गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जी का एक विचार पढा था कि "किताब के आदमी बनावटी बात करते है, दरअसल वे जिस बात पर हँसते है,रोते है,क्रोधित होते है,उत्तेजित होते है वे बाते केवल हास्य, करूण, क्रोध और वीर रस के अलावा कुछ भी नही होती है। वास्तविक आदमी की अपनी एक कल्पना होती है वह रक्त मासँ का बना एक सजीव प्राणी होता है जो प्रत्यक्ष रूप से जीता और जागता है,और यही उसकी सच्ची जीत होती है।" शायद गुरूदेव ने सही कहा है कि किताबे केवल बनावटी बाते करती है बस, क्योंकि अगर किताबों मे जो लिखा है उसे सच मानकर चले तो राजनितिक परिदृश्य में बिल्कुल इसके विपरीत नजारा देखने को मिल रहा है। किताबों में अगर विचारधाराओं की बात की जाये तो हमारे देश में मुख्य रूप से दो विचारधाराएँ अस्तित्व में है पहली है वामपंथी विचारधारा,दुसरी है दक्षिणपंथी विचारधारा। इन दोनों विचारधाराओं के बीच में फँस कर रह गया हैं "राष्ट्रवाद" जिसकी परिभाषा या सर्टिफिकेट इन दोनों विचारधाराओं के लोग अपने अपने हिसाब से देते आये हैं। अब अगर किताबों से मुखातिब हो तो वामपंथी विचारधारा की परिभाषा किताबों मे लिखित है कि &qu

उदास होने का भी भला कोई शबब हो सकता है क्या?????

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 कभी -कभी दिन के दुसरे पहर में,या शाम के ढलते समय , जब सूर्य अपनी ढलती हुई लालिमा के साथ , समुद्र के किसी एक छोर पर, अस्त होता है , उस समय विचलित सा थोड़ा द्रवित सा , मन उदासी की लालिमा ओढ़े , पश्चिम की ओर डूबता जाता है, अपने शामियाने में लौटते हुए पंछी, खेत से घर लौटता हुआ थका हारा किसान, मालिक से डॉट खाकर मायूस हुआ मज़दूर , जब मुँह को लटकाये, कन्धों को झुकाकर पगडण्डी पर किसी सोच में डूबे हुए चलते जाता है। तब भी वो उदास होता है , लेकिन यूँ हरदफा उदास होने का भी भला कोई शबब हो सकता है क्या?????

अस्मत लुटेरों का स्वर्णिम प्रदेश

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वैसे तो मध्यप्रदेश सरकार बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर विज्ञापनों में करोड़ो रुपये ख़र्च करती है. मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आप को मध्यप्रदेश के बच्चों का खासकर बेटियों के लिए स्वयं को उनका "मामा" घोषित किया है! महिला सुरक्षा कानून के नाम पर लाखों रुपये खर्च किये है! लेकिन अफ़सोस की बात है की इतने बड़े-बड़े जुमले करने के बावजूद भी मध्यप्रदेश  महिलाएं और बेटियां सुरक्षित नही है। शिवराज सरकार द्वारा देखा गया स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सपना केवल सपना बनकर गर्त में जाते दिखाई दे  रहा है. यहाँ पर बेटियों एवं महिलाओं की अस्मत हर घडी खतरे में रहती है।       हाल ही  जारी 2015 की रिपोर्ट पर नज़र डाले तो हम पाते है की हमारे देश में 2015 में कुल 36935 बलात्कार की घटनाये हुई है ,जिसमे 5103 घटनाओं के साथ एक बार फिर से मध्यप्रदेश शीर्ष पर है। अगर 2014 से तुलना करे तो हम देखते है की प्रदेश में इस साल 17 फीसदी ज्यादा बलात्कार और यौन शोषण जैसी घटनाये हुई है। राष्ट्रीय अपराध बूयरो ने तो मध्यप्रदेश को "अस्मत लुटेरो का राज्य" घोषित कर दिया है।  प्रदेश में 2004 स

हफ्ते वाला प्यार दिखावे का बाजार‬

जिसे एहसास भर कर लेने से दिल को सुकून मिल जाता था, आज कल उस पर भी विमर्श होने लग गया। आज प्यार जैसे पवित्र एहसास रूपी शब्द को लोगों ने तवायफ बनाकर रख दिया है। पहले लोग प्यार को कभी दिखाते नही थे कि मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ/करती हूँ । लेकिन आज के इस फिल्मी वातावरण से ग्रसित समाज मे हर कदम पर लोग प्यार करने का दिखावा करते है और दिखावे मे भी अपनी भावनाओं का मठ्ठा घोलते रहते है, एक लड़का आज एक लड़की को कहते फिरता है कि " देखो मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ , तुम नही मिली तो मै मर जाऊँगा, तुम्हारे बिना मै कभी जिन्दा नही रहुगा और भी ना जाने क्या क्या"। अब भला ऐसा भी कभी होता है क्या?? कई दफा लोग प्यार का मतलब पूछते रहते है जबकि प्यार का कोई मतलब नही होता है और जहाँ पर मतलब आ गया फिर वह प्यार नहीं । प्यार तो एक अबुझ पहेली है जिसे कोई नही समझ सका हैं । क्या कभी देखा है कि जब कोई माँ अपने बच्चे से प्रेम करती है तो उसमे कोई मतलब हो? जब एक गुरू अपने शिष्य से प्रेम करता है तो उसमे कोई मतलब हो? जब एक बहन अपने भाई से प्रेम करती है तो उसमे कोई मतलब हो? यहाँ तक की जब कोई प

ऐ जिन्दगी!!!

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ऐ जिन्दगी!!! सोचा था, कि अपनी सारी कविताएँ, सारी नज्में, सारी गजले, सारे मुक्तक, सारे शेर, सारे लेख, सारे गीत, सब तुझे अर्पित कर दु। सोचा था, अपनी कविताओं में तुझे आधार बनाकर, कोई नया नग्मा बना लू, कोई नयी तहरीर ऐसी लिख दु, जिसमें सिर्फ और सिर्फ तेरा ही जिक्र हो, हर दफा तेरी ही फिक्र हो बस!! सोचा था, तुझे इतना सजाऊँ, इतना सजाऊँ कि कामदेव भी तुझे देखकर शर्मिन्दा होने लगे, ऐं जिन्दगी!! सोचा था,    कि हर पल हर लम्हा सिर्फ तेरी यादों मे डूबकर ढेर सारी गजल लिख दु, सोचा था कि,तुझे इतना प्यार करू इतना प्यार कि कोई देखे तो सहम जाये। लेकिन!!! तु तो महज एक सुब्ह के धुधंलके मे दिखाई दिया हुआ सपना बनकर रह गयी ऐं जिन्दगी!!! तु महज एक उन्मादमयी स्वप्न के सिवा, कुछ भी नही, कुछ भी नही, कुछ भी नहीं!!!!!!!! ‪#‎ बेखबर‬ ....