मुक्तक
एक मुक्तक युँ ही चलते चलते................
कहने को मोहब्बत जब कभी , कमरे की चार दीवारी में
देखो , कैसे घुटती रहती , किसी मर्दानी बाँहों में
झूठी तोहमत झूठे वादे झूठी सब कहानी होती है
यारों यह कोई इश्क़ नहीं , फरेबी जवानी होती है।
कहने को मोहब्बत जब कभी , कमरे की चार दीवारी में
देखो , कैसे घुटती रहती , किसी मर्दानी बाँहों में
झूठी तोहमत झूठे वादे झूठी सब कहानी होती है
यारों यह कोई इश्क़ नहीं , फरेबी जवानी होती है।
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