हफ्ते वाला प्यार दिखावे का बाजार‬

जिसे एहसास भर कर लेने से दिल को सुकून मिल जाता था, आज कल उस पर भी विमर्श होने लग गया।
आज प्यार जैसे पवित्र एहसास रूपी शब्द को लोगों ने तवायफ बनाकर रख दिया है।
पहले लोग प्यार को कभी दिखाते नही थे कि मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ/करती हूँ ।
लेकिन आज के इस फिल्मी वातावरण से ग्रसित समाज मे हर कदम पर लोग प्यार करने का दिखावा करते है और दिखावे मे भी अपनी भावनाओं का मठ्ठा घोलते रहते है, एक लड़का आज एक लड़की को कहते फिरता है कि " देखो मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ , तुम नही मिली तो मै मर जाऊँगा, तुम्हारे बिना मै कभी जिन्दा नही रहुगा और भी ना जाने क्या क्या"। अब भला ऐसा भी कभी होता है क्या??
कई दफा लोग प्यार का मतलब पूछते रहते है जबकि प्यार का कोई मतलब नही होता है और जहाँ पर मतलब आ गया फिर वह प्यार नहीं ।
प्यार तो एक अबुझ पहेली है जिसे कोई नही समझ सका हैं ।
क्या कभी देखा है कि जब कोई माँ अपने बच्चे से प्रेम करती है तो उसमे कोई मतलब हो?
जब एक गुरू अपने शिष्य से प्रेम करता है तो उसमे कोई मतलब हो?
जब एक बहन अपने भाई से प्रेम करती है तो उसमे कोई मतलब हो?
यहाँ तक की जब कोई प्रेमी जोड़ा भी सच्चा प्रेम करता हो तो उसमे भी मतलब नही होता हैं ।
प्यार तो केवल एक एहसास है जिसे केवल महसूस किया जा सकता हैं ।
अगर हम किसी को हासिल करने की किसी को पाने की ख्वाहिश रखते है तो वह प्रेम नही हैं।
कुमार साहब का एक मुक्तक हैं कि-
"मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी हैं।
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखो मे आँसू हैं
जो तु समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी हैं"

इसलिए सीधी सी बात है कि प्यार का कोई हफ्ता नही होता वह तो हर पल हर क्षण हमारे जीवन मे विद्यमान हैं।
किसी को पाना ही प्यार नही होता उस सख्स की इज्जत करना उसके साथ साथ चलना उसे खूश रखना आदि जो भावनाए है वही सच्चा प्रेम है जो कि एक माँ, पिता, भाई, बहन और दोस्त से भी हो सकता हैं ।
‪#‎बेखबर‬

 

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