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नई कविता या नहीं कविता

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स्वतंत्रता के बाद से हिन्दी साहित्य में जो नई कविता का युग प्रारंभ हुआ , कहा गया कि प्रयोगवाद के बाद जो कविता की नवीन धारा विकसित हुई वह नई कविता हैं। इस नई कविता के युग में रची जाने वाली रचनाधर्मिताओं का आधार बिम्ब , समाज , संस्कृति , देशप्रेम , सौन्दर्य बोध , प्रकृति आदि हैं ऐसा माना जाता आ रहा हैं कि इस युग के रचनाकारों ने परम्पराओं को दरकिनार कर प्रगतिशील रचना की पैठ स्थापित की थी। अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित -"द्वितीय तारसप्तक" हो या फिर इलाहाबाद की साहित्यिक संस्था ' परिमल ' के द्वारा प्रकाशित "नई कविता" पत्रिका हो , जिनसे ही इस युग की नींव स्थापित हुई थी। धीरे धीरे इस नई कविता के युग में परिवर्तन ही परिवर्तन नज़र आये , जो रचनाधर्मिता इस युग के प्रारंभ में देखने को मिली आगे चलकर वह और प्रभावी बनती गई लेकिन अब इतना आगे निकल आयी की उसका प्रभाव समाप्त हो गया। अज्ञेय , मुक्तिबोध , भवानीप्रसाद मिश्र आदि के बाद दुष्यंत कुमार के बाद जयकुमार जलज , श्रीराम परिहार आदि ने इस युग को बढ़ाने में बखुबी योगदान दिया। लेकिन ये कविताएँ केवल बौद्धिक लो