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Showing posts from February, 2016

विचारधारा और राष्ट्र

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बहुत पहले गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जी का एक विचार पढा था कि "किताब के आदमी बनावटी बात करते है, दरअसल वे जिस बात पर हँसते है,रोते है,क्रोधित होते है,उत्तेजित होते है वे बाते केवल हास्य, करूण, क्रोध और वीर रस के अलावा कुछ भी नही होती है। वास्तविक आदमी की अपनी एक कल्पना होती है वह रक्त मासँ का बना एक सजीव प्राणी होता है जो प्रत्यक्ष रूप से जीता और जागता है,और यही उसकी सच्ची जीत होती है।" शायद गुरूदेव ने सही कहा है कि किताबे केवल बनावटी बाते करती है बस, क्योंकि अगर किताबों मे जो लिखा है उसे सच मानकर चले तो राजनितिक परिदृश्य में बिल्कुल इसके विपरीत नजारा देखने को मिल रहा है। किताबों में अगर विचारधाराओं की बात की जाये तो हमारे देश में मुख्य रूप से दो विचारधाराएँ अस्तित्व में है पहली है वामपंथी विचारधारा,दुसरी है दक्षिणपंथी विचारधारा। इन दोनों विचारधाराओं के बीच में फँस कर रह गया हैं "राष्ट्रवाद" जिसकी परिभाषा या सर्टिफिकेट इन दोनों विचारधाराओं के लोग अपने अपने हिसाब से देते आये हैं। अब अगर किताबों से मुखातिब हो तो वामपंथी विचारधारा की परिभाषा किताबों मे लिखित है कि &qu

उदास होने का भी भला कोई शबब हो सकता है क्या?????

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 कभी -कभी दिन के दुसरे पहर में,या शाम के ढलते समय , जब सूर्य अपनी ढलती हुई लालिमा के साथ , समुद्र के किसी एक छोर पर, अस्त होता है , उस समय विचलित सा थोड़ा द्रवित सा , मन उदासी की लालिमा ओढ़े , पश्चिम की ओर डूबता जाता है, अपने शामियाने में लौटते हुए पंछी, खेत से घर लौटता हुआ थका हारा किसान, मालिक से डॉट खाकर मायूस हुआ मज़दूर , जब मुँह को लटकाये, कन्धों को झुकाकर पगडण्डी पर किसी सोच में डूबे हुए चलते जाता है। तब भी वो उदास होता है , लेकिन यूँ हरदफा उदास होने का भी भला कोई शबब हो सकता है क्या?????

अस्मत लुटेरों का स्वर्णिम प्रदेश

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वैसे तो मध्यप्रदेश सरकार बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर विज्ञापनों में करोड़ो रुपये ख़र्च करती है. मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आप को मध्यप्रदेश के बच्चों का खासकर बेटियों के लिए स्वयं को उनका "मामा" घोषित किया है! महिला सुरक्षा कानून के नाम पर लाखों रुपये खर्च किये है! लेकिन अफ़सोस की बात है की इतने बड़े-बड़े जुमले करने के बावजूद भी मध्यप्रदेश  महिलाएं और बेटियां सुरक्षित नही है। शिवराज सरकार द्वारा देखा गया स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सपना केवल सपना बनकर गर्त में जाते दिखाई दे  रहा है. यहाँ पर बेटियों एवं महिलाओं की अस्मत हर घडी खतरे में रहती है।       हाल ही  जारी 2015 की रिपोर्ट पर नज़र डाले तो हम पाते है की हमारे देश में 2015 में कुल 36935 बलात्कार की घटनाये हुई है ,जिसमे 5103 घटनाओं के साथ एक बार फिर से मध्यप्रदेश शीर्ष पर है। अगर 2014 से तुलना करे तो हम देखते है की प्रदेश में इस साल 17 फीसदी ज्यादा बलात्कार और यौन शोषण जैसी घटनाये हुई है। राष्ट्रीय अपराध बूयरो ने तो मध्यप्रदेश को "अस्मत लुटेरो का राज्य" घोषित कर दिया है।  प्रदेश में 2004 स

हफ्ते वाला प्यार दिखावे का बाजार‬

जिसे एहसास भर कर लेने से दिल को सुकून मिल जाता था, आज कल उस पर भी विमर्श होने लग गया। आज प्यार जैसे पवित्र एहसास रूपी शब्द को लोगों ने तवायफ बनाकर रख दिया है। पहले लोग प्यार को कभी दिखाते नही थे कि मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ/करती हूँ । लेकिन आज के इस फिल्मी वातावरण से ग्रसित समाज मे हर कदम पर लोग प्यार करने का दिखावा करते है और दिखावे मे भी अपनी भावनाओं का मठ्ठा घोलते रहते है, एक लड़का आज एक लड़की को कहते फिरता है कि " देखो मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ , तुम नही मिली तो मै मर जाऊँगा, तुम्हारे बिना मै कभी जिन्दा नही रहुगा और भी ना जाने क्या क्या"। अब भला ऐसा भी कभी होता है क्या?? कई दफा लोग प्यार का मतलब पूछते रहते है जबकि प्यार का कोई मतलब नही होता है और जहाँ पर मतलब आ गया फिर वह प्यार नहीं । प्यार तो एक अबुझ पहेली है जिसे कोई नही समझ सका हैं । क्या कभी देखा है कि जब कोई माँ अपने बच्चे से प्रेम करती है तो उसमे कोई मतलब हो? जब एक गुरू अपने शिष्य से प्रेम करता है तो उसमे कोई मतलब हो? जब एक बहन अपने भाई से प्रेम करती है तो उसमे कोई मतलब हो? यहाँ तक की जब कोई प

ऐ जिन्दगी!!!

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ऐ जिन्दगी!!! सोचा था, कि अपनी सारी कविताएँ, सारी नज्में, सारी गजले, सारे मुक्तक, सारे शेर, सारे लेख, सारे गीत, सब तुझे अर्पित कर दु। सोचा था, अपनी कविताओं में तुझे आधार बनाकर, कोई नया नग्मा बना लू, कोई नयी तहरीर ऐसी लिख दु, जिसमें सिर्फ और सिर्फ तेरा ही जिक्र हो, हर दफा तेरी ही फिक्र हो बस!! सोचा था, तुझे इतना सजाऊँ, इतना सजाऊँ कि कामदेव भी तुझे देखकर शर्मिन्दा होने लगे, ऐं जिन्दगी!! सोचा था,    कि हर पल हर लम्हा सिर्फ तेरी यादों मे डूबकर ढेर सारी गजल लिख दु, सोचा था कि,तुझे इतना प्यार करू इतना प्यार कि कोई देखे तो सहम जाये। लेकिन!!! तु तो महज एक सुब्ह के धुधंलके मे दिखाई दिया हुआ सपना बनकर रह गयी ऐं जिन्दगी!!! तु महज एक उन्मादमयी स्वप्न के सिवा, कुछ भी नही, कुछ भी नही, कुछ भी नहीं!!!!!!!! ‪#‎ बेखबर‬ ....

कवायद

आज कल लोग कुछ लगाये न लगाये कवायद लगाना कभी नही भुलते। आप एक समय के लिये अगर अपने नाम पर लगने वाली मात्रा न लगाओ तो चल जायेगा लेकिन अगर आपने कवायद नही लगाई तो फिर आपका जीना व्यर्थ है समझो। अब कवायद भी कौन लगाता है देखिए- सबसे पहले कवायद शब्द का उपयोग करती है हमारी मीडिया, अब कभी किसी पाकिस्तानी क्रिकेटर की भारतीय क्रिकेटर से बात हो गई अपने खेल को ही लेकर तो हमारी मीडिया का रूख रहेगा कि-"आज फलाँ क्रिकेटर पाकिस्तान के फलाँ क्रिकेटर से मिला दोनो मे घन्टो गुफ्तगु होती रही भले ही दोनो ने 5 मिनट बमुश्किल से बात की होगी लेकिन मीडिया बतायेगी तो ऐसे जैसे कि सीमा पर युद्ध की साजिशे रची जा रही है।" अब एक नजर डालते है राजनीति के क्षेत्र मे कवायद कैसे लगती हैं । हाल कि बात करे अभी तो "कुमार विश्वास की बर्थ डे पार्टी चल रही थी उसमे बीजेपी के दिग्गज नेता मौजूद, कुमार विश्वास के बीजेपी मे शामिल होने की कवायद बड़ी" अब इसमे नयी बात कौन सी है भैया अब पार्टी मे शामिल दोस्त भी तो हो सकते है जरूरी तो नही की सारे बीजेपी के ही हो अन्य पार्टियों के भी लोग आते है उन पर फोकस कीजिए

यूँ खुद को ना उदास करों

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सारी कोशिशें जब दर दीवार होने लगे बेवजह जब कोई दरकिनार होने लगे फलसफाँ रहगुजर का नया आयाम तलाश करों..... घुट घुट कर जी कर ना खुद को उदास करों.... उम्मीदें सारी जब गम ए रूखसत सी होने लगे उन्मादमयी सपने सारे यातनाओं मे सोने लगे करवटे बदल कर नया रास्ता इजाद करो.. अतीत से मुखातिब हो यूँ खुद को ना निराश करों.......... झूठी तोहमत जब दिल के साथ होने लगे हाल ए जज्बात जब साथ साथ रोने लगे उठ कर सुदूर सा कोई मन्सूबा नायाब करो.... यादों की गठरी खोल यूँ खुद को ना नासाज करों..... "बेखबर"