सियासत में जरूरी है रवादारी....समझता है??
गरीबी अशिक्षा भ्रष्टाचार आदि को सिरे से खारिज
कर देने के वायदों के साथ लोगों के दिलों में बहुत तेजी से विश्वास घोलने वाली
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रही है,जिस
जनलोकपाल और भ्रष्टाचार को हथकण्डा बनाकर लोगों के दिलों में जो विश्वास आम आदमी
पार्टी ने कायम किया था,वह महज अब एक ढकोसला साबित होते जा रहा है.
जिन लोगों ने जनता को यकीन दिलाया था कि वे एक
भ्रष्टाचार मुक्त भारत की नींव स्थापित करेंगे वे लोग खुद उलुल जलुल बयानबाजी या
महिला उत्पीड़न के केस में शामिल होकर जनता के अनदेखे विश्वास पर पानी फेरे जा रहे
है.
अरविंद केजरीवाल का रूख धीरे धीरे धुर विरोधी
बनता जा रहा है,हर मसले पर अब केजरीवाल केन्द्र को निशाना बना रहे है,केन्द्र के
हर अच्छे काम पर भी केजरीवाल की बयानबाजी उनके व्यक्तित्व को परिभाषित कर रही है.
अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में ही आम आदमी
पार्टी अपनी इतनी भद्द पिटवा चुकी है जितनी तो विपक्ष की अन्य पार्टियों ने भी नही
पिटवाई थी.
डेढ़ साल में ही पार्टी के आधे मंत्री हटाने
पड़े,करीब दो दर्जन विधायक आपराधिक मामलों में पूलिस के घेरे में हैं, पंजाब में
मोर्चा संभाले नेताओं पर पैसा वसुलने और यौन शोषण का आरोप है,इतने सारे आरोपों के
बावजूद भी इनसे सीख लेकर इन्हे समाप्त करने की बजाय पार्टी का रूख केवल केन्द्र पर
बयानबाजी करना ही रह गया है.
हाल ही में उरी में हुये आतंकी हमले के बाद
सेना के सर्जिकल आँपरेशन में सेना और केन्द्र की हौसँलाफजाई करने के बजाय केजरीवाल
केन्द्र से सर्जिकल आँपरेशन का वीडियो माँग रहे है,क्या इतना भी धुर विरोधी होना
किसी राजनेता को शोभा देता है?
सेना की गोपनीयता,रक्षा मंत्रालय की गोपनीय
जानकारियाँ सबके सामने उजागर करना क्या जायज है?
क्या विरोध की अंधी दौड़ में केजरीवाल का अपनी
सेना पर भी विश्वास नही रहा?
या फिर यह केवल सुर्खियों में रहने के लिये दी
जाने वाली बेतूकी बयानबाजी है?
केजरीवाल अपने मन में जो भी खेल खेल रहे हो
लेकिन केन्द्र के प्रति इतना धुरविरोध
कहीं न कहीं उनकी अस्मिता को खंडित करते नजर आ रहा है.यदि केजरीवाल पंजाब चुनाव को
ध्यान में रखकर सुर्खियों में बने रहने के कारण ऐसा कर रहे है तो कहीं ऐसा न हो कि
यही सुर्खिया उन्हे पंजाब तो छोड़ो दिल्ली के तख्त से भी कही बेदखल ना कर दे.
केजरीवाल को चाहिए की जहाँ पर विरोध संभव हो
केवल वही तक विरोध करे लेकिन जहाँ बात राष्ट्र की हो वहाँ तो अपना विपक्षी रवैया
भूलकर राष्ट्र के साथ खड़े रहे,
जहाँ सेना के सर्जिकल अभियान के साथ सारे
विपक्षी दल मिलकर केन्द्र के साथ खड़े हो वही केजरीवाल अलग ही अपना राग आलाप करते
नजर आते है.
अगर जल्द ही केजरीवाल अपनी इन बेतूकी गफलतों से
बाज नही आये तो जनता की राजनिती उनका तख्ता पलटने में देर नही करेगी....
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