गुल्लक और उसके पांच सिक्के

कुछ ही महीनो पहले की बात है एक नई नई सी गुल्लक कमरे में दाखिल हुई थी, या यह कहे की कोई ईश्वर का फरिश्ता उस गुल्लक को उस एक कमरे में छोड़कर चला गया था.अब गुल्लक कमरे में आयी तो  धीरे धीरे उसमें सिक्के भी आना शुरू हुआ।
पहला सिक्का मैं स्वयं था, जो उस गुल्लक में प्रवेश हुआ था, मेरी हैसियत केवल एक मेलोडी खरीदने लायक थी ,क्योंकि मैं था ही एक रुपये का सिक्का !
वह जो गुल्लक थी अंदर से आम गुल्लकों की तुलना में काफी गहरी थी,उसमे मेरे जैसे तकरीबन 500-1000 सिक्के आ सकते थे, वह अलग बात थी की गुल्लक का प्रेम शायद कुछ ही सिक्कों से था या यह कहे की गुल्लक अपने अंदर केवल पाँच सिक्कों को ही रखना चाहती थी , और वह भी एक एक रुपये के पाँच सिक्के।
जो अन्य 4 सिक्के थे वह भी मेरी तरह ही एक रुपये वाली या शायद एक रूपये से ज्यादा की हैसियत रखते थे।
अब जैसे ही गुल्लक में पाँचों सिक्के एक साथ हुए उनमे आपस में लगाव बढ़ने लगा यह देखकर गुल्लक बहुत खुश हुई, गुल्लक को लगा मेरे अंदर रहने वाले ये सिक्के बहुत खुश है और उन सिक्को की ख़ुशी देखकर गुल्लक मन ही मन खुश होती रही।
कुछ ही समय में सिक्के और गुल्लक में इतनी ज्यादा घनिष्ठता हो गयी की जब भी सिक्के गुल्लक से बाहर आने की कोशिश करते गुल्लक एक दम से घबरा जाती या कभी जब गुल्लक अचानक से डोलने लगती तो सिक्के विस्मित होकर एक दूसरे की ओर आश्चर्य से देखने लगते.
बहुत ही सुगमता से परिपूर्ण जिंदगी चल रही थी उन सिक्कों और गुल्लक की ,
जिस प्रकार वास्तविक जीवन में पाँच घनिष्ठ मित्र और एक आदर्शवादी,सिद्धांतवादी व्यक्ति का आपस में तालमेल स्थापित होता है ठीक वैसे ही गुल्लक और उन सिक्को के बीच था।
गुल्लक एक आदर्शवादी,सिद्धांतवादी व्यक्ति की तरह थी और पाँच सिक्के उन पाँच घनिष्ठ मित्रों की तरह....
साथ बैठना, कहना ,खाना ,हँसना सब कुछ उन सिक्कों का गुल्लक की देखरेख में होता था ,लेकिन कुछ समय बाद न जाने किस तरह का तूफान आया की गुल्लक हिल्लोरे खाने लगी डोलने लगी, सहसा लगा की कुछ अनर्थ होने वाला है लेकिन जब तह तक घुसकर जाना तो पाया की उस समय जो तूफान  आया था उसकी असली वजह तो सिक्के  ही थे , जी हाँ न जाने किस वजह से सिक्को में आपसी मदभेद निर्मित होने लगे सिक्के आपस  में ही लड़ने लगे किसी न किसी बात से सिक्को में रोज लड़ाईयाँ होने लगी ,जहाँ एक एक रुपये के सिक्के मिलकर पाँच हुये थे जिनका आपस में मोल पाँच रुपये हो गया था वे फिर से बिखरने लगे फिर  मोल वही एक रुपये की मेलोडी लायक हो गया।

अपनी अपनी आपसी लड़ाई या मदभेदों के दरमियाँ सिक्के उनकी खनकती खनकार से गुल्लक को होने वाले दर्द को ही भूल गए, वे भूलते गए की उन सिक्को को इतनी सहजता शीतलता से सहेजने वाली वह गुल्लक ही थी ,वह गुल्लक ही थी जिसने उन सिक्को को एक रुपये से पाँच रुपये का बनाया था  , वह गुल्लक ही थी जिसने ऊपरी त्वचा पर धूप सहकर भी उन सिक्को को शीतलता प्रदान की थी , लेकिन बदले में सिक्को ने गुल्लक के साथ क्या किया ? अपनी आपसी लड़ाई की चोट भी तो गुल्लक को ही पहुचाई , लड़ते सिक्के थे लेकिन दर्द तो गुल्लक को ही हुआ न लेकिन ये बात सिक्के शायद कभी भी न समझ पाए।
सिक्के जब भी लड़ते हुए गुल्लक से टकराते थे गुल्लक के मुँह से एक आह निकलती थी लेकिन सिक्के अपने आप में शायद इतने मगरूर हो चले थे की उन्हें गुल्लक की चीत्कार ही सुनाई न दी।
धीरे धीरे गुल्लक में दरारे आने लगी ,वह कमजोर होने लगी , सहसा शायद उसने सोचा की जिन सिक्को को उसने इतनी सहजता से संभाल कर रखा था उनमे अब गुरुर घर कर गया है , वे अब उसे ही चोट पहुँचाने लगे है
 इसलिए गुल्लक ने अब फूटने का निश्चय किया , अब अगर गुल्लक फूटती है तो पॉँचो सिक्के बिखर जाएंगे , पाँचो का मोल फिर से एक रुपये वाली मेलोडी का हो जायेगा।
तो क्या अब पाँचो सिक्के फिर से एक होकर गुल्लक को मज़बूत करेंगे ?
या फिर गुल्लक कमजोर होते होते फूट जायेगी और सिक्के बिखर जायेगे ?
इंसानी फितरत भी तो इन सिक्को की तरह ही है हमेशा कहते रहेंगे हमें कोई सहेजता नही है सहेजता नही है , और जब गुल्लक की तरह कोई सहेजने वाला मिलता है तो उसकी कद्र ही इंसान भूल जाता है, और खुद तो बिखरता ही है साथ  में उस गुल्लक की तरह सहेजने वाले को भी बिखरा देता है.
 गुल्लक फुट जाती है टूट जाती है बिखर  कर जमीन पर गिर जाती है सिक्के अपने गुरुर के चलते इधर उधर बिखर जाते है  लगता है एक घरौंदा टूट गया। ......
फिर कोई नई गुल्लक आयेगी फिर कोई नये सिक्के होंगे फिर कोई नया कमरा होगा।
 लेकिन !
पुराना तो पुराना ही होता है न,  ........................


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