कवायद

आज कल लोग कुछ लगाये न लगाये कवायद लगाना कभी नही भुलते। आप एक समय के लिये अगर अपने नाम पर लगने वाली मात्रा न लगाओ तो चल जायेगा लेकिन अगर आपने कवायद नही लगाई तो फिर आपका जीना व्यर्थ है समझो। अब कवायद भी कौन लगाता है देखिए- सबसे पहले कवायद शब्द का उपयोग करती है हमारी मीडिया, अब कभी किसी पाकिस्तानी क्रिकेटर की भारतीय क्रिकेटर से बात हो गई अपने खेल को ही लेकर तो हमारी मीडिया का रूख रहेगा कि-"आज फलाँ क्रिकेटर पाकिस्तान के फलाँ क्रिकेटर से मिला दोनो मे घन्टो गुफ्तगु होती रही भले ही दोनो ने 5 मिनट बमुश्किल से बात की होगी लेकिन मीडिया बतायेगी तो ऐसे जैसे कि सीमा पर युद्ध की साजिशे रची जा रही है।" अब एक नजर डालते है राजनीति के क्षेत्र मे कवायद कैसे लगती हैं । हाल कि बात करे अभी तो "कुमार विश्वास की बर्थ डे पार्टी चल रही थी उसमे बीजेपी के दिग्गज नेता मौजूद, कुमार विश्वास के बीजेपी मे शामिल होने की कवायद बड़ी" अब इसमे नयी बात कौन सी है भैया अब पार्टी मे शामिल दोस्त भी तो हो सकते है जरूरी तो नही की सारे बीजेपी के ही हो अन्य पार्टियों के भी लोग आते है उन पर फोकस कीजिए थोड़ा।  
मनोरंजन के क्षेत्र मे तो कवायद का पूछिये ही मत बस एक बार कोई छोरी किसी छोरे नाल दिख गई तो बस गयी भैस पानी मे , हमारी मीडिया उसे 10 मिनट मे दोस्ती मोहब्बत धोखा दिखाकर Henceproved.... करने मे कोई भी कसर नही छोड़ती । लेकिन एक बात जो समझ से परे है वह यह कि कभी हम स्वच्छ राजनीति पर अटकले कसते क्यूँ नजर नही आते, कभी हिन्दू मुस्लिम से उपर उठकर इंसानियत पर कोई कवायद क्यूँ नही लगती?? वैसे सही भी है अगर अटकले नही लगेगी तो TRP कैसे बढेगी, भले ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर मे इंसानियत पर ब्रेक लग जाये लेकिन हम आग लगाना बंद नही करेंगे। हो कहीं भी आग बस आग लगनी चाहिए ।
 तो लगाईये आप भी अटकले लगाइये,कवायद लगाईये कभी तो आपकी द कवायद ,आपकी अटकले सही साबित होगी।

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