बस एक तुम्हारी जीत के ख़ातिर हम अपनों से हार चले हैं...

वही तुम्हारा रोना धोना वही तुम्हारी नादानी,
जज्बातों से खेल खेल में वही तुम्हारी शैतानी,
रूठे रूठे बातें करना या पल में गुस्सा हो जाना,
कभी देर तलक जागते रहना या फिर जल्दी सो जाना,
‌खुद ही खुद को समझा कर हम खुद ही खुद से दूर चले हैं,
‌बस एक तुम्हारी जीत की खातिर हम अपनों से हार चले है।(1)


‌हर एक तुम्हारी गुस्ताखी को,गुस्ताखी लिखना चाहा था,
झूठे सच्चे लम्हों में संग दर्पण में दिखना चाहा था,
ख़ामोशी जब जब तोड़ी हमने,हम हुए हमेशा बदनाम सही,
तुम सच्ची सच्ची बातों वाली,हम झूठे पैगाम सही,
महफिल महफ़िल मुस्काकर लो अपनी वो दुनिया छोड़ चले है,
बस एक तुम्हारी जीत के खातिर हम अपनों से हार चले है।(2)


भावों से भावों में घुसकर भावों को ही तौल दिया अब,
होंठो से एक गरम लगाकर शब्दों को भी खोल दिया अब,
आने वाली नश्ले मुझको बेशक ठुकरा जाये तो?
गुस्ताखी खुद जो की नही हैं उनका दोष लगाये तो?
फिर भी हँसते हँसते हम लो होठों में विष डाल चले हैं,
बस एक तुम्हारी जीत की खातिर हम अपनों से हार चले हैं।(3)

बस एक तुम्हारी जीत की खातिर हम अपनों से हार चले हैं....

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