बेहाल मध्यप्रदेश

नजर नवाज,नजारा ,कुछ बदला हुआ सा हैं ।
प्रदेश का लोकतंत्र मेरा,आज कुछ सहमा हुआ सा हैं ।

न शिद्दत बची है कुछ पाने की,
न हिम्मत बची है कुछ कर दिखाने की,
उठता हुआ मध्यप्रदेश मेरा,आज कुछ सोया हुआ सा हैं ।


व्यापम की मार से,
गुनहगाँरो की हाहाँकार से,
आम आदमी की हार से,
जालिम सरकार से,
देख भोज!तेरा भोपाल आज कुछ खोया हुआ सा हैं ।

सियासत की खुमारी हैं ,
पड़ रही अब सब पर भारी हैं ,
कैसी गहमा-गहमी है ये,
जंग अभी तक जारी हैं ,
देश का प्रधान भी मेरा,आज कुछ "मनमोहन "हुआ सा हैं ।

चार पेज की फाईल बनी हैं ,
रिश्वत ही शायद साहिल बनी है,
क्या अब कुछ हल निकलेगा ?
शायद आज नहीं तो कल निकलेगा ,
इसी काल्पनिक मार से ,जन जन आज कुछ रोया हुआ सा हैं ।

नजर नवाज,नजारा ,कुछ बदला हुआ सा हैं ।
प्रदेश का लोकतंत्र मेरा आज कुछ सहमा हुआ सा हैं ।

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