अंधविश्वास

इस सूचना क्रांति और आधुनिकता के दौर मे हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर
घर बसाने कि सोच रहे है।हमारा वैज्ञानिक समाज जो आये दिन नये -नये
आविष्कार कर रहा है, हर दिन नीत नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, लेकिन
हमारे समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी ऐसा है जो अंधविश्वास और झूठी
परम्पराओ के जाल मे फँसा हुआ है।और ताज्जुब की बात यह है कि इन
अंधविश्वासी परम्पराओ के भवर मे बहुत बड़ा शिक्षित समाज भी है।
इस शिक्षित समाज मे भी हम बहुत सी परम्पराओ और अंधविश्वासो को बिना कुछ
विचार किये ज्यों का त्यों स्वीकार किये जा रहे है ,हम यह भी नही देख रहे
कि इन परम्पराओ का ,इन अंधविश्वासो का कोई आधार कोई अस्तित्व है भी या
नहीं ।
हमारी बहुत सी मान्यताए ऐसी है जो विज्ञान और आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर
खरी नहीं उतरती है ।वैज्ञानिक युग के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अंधविश्वास
की जडे समाज से नहीं उखड़ रही है ,अंधविश्वास ,आडम्बर और झूठी परम्पराओ
का ज्यादा असर हमारे ग्रामीण क्षेत्रों मे दिखाई दे रहा है।धर्म का झूठा
चोला पहने कई पांखण्डीयो द्वारा आज भी लोगों को जादू -टोने,भूत-प्रेत,
तांत्रिक विद्या से बीमारियों का उपचार ,भभूत से उपचार और न जाने किन किन
झूठी मान्यताओ द्वारा गुमराह किया जा रहा है।जबकि इन चीजों का कुछ औचित्य
है ही नहीं ।
अंधविश्वास को दुर करने के लिये पुलिस व सरकार वर्षों से प्रयासरत
है,लेकिन उनके प्रयासों का अब तक कोई ठोस हल नहीं निकल सका।सरकार ने समाज
मे व्याप्त झूठी मान्यताओ ,आडम्बरों और जादु टोने से प्रताड़ित होने वाले
लोगों को न्याय दिलाने के लिये टोनही प्रताड़ना अधिनियम 2005 लागू किया
लेकिन अधिनियम के कायदे और कानून महज किताबों तक ही सिमट कर रह गये है
,कानून लागू होने के आज 10 साल बाद भी लोग उसे मानने को तैयार नहीं
है,ऐसे मे सवाल यह उठता है कि हम कैसे इस अंधविश्वास को समाप्त करें जो
हमारे समाज की प्रगति मे रोडा बन रही है। कैसे समाज को आडम्बरी बाबाओ के
चंगुल से बचाया जाये????

पंकज कसरादे
मुलतापी
मध्यप्रदेश

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