प्रेम में आत्महत्या

प्रेम करने का यह कैसा तरीका है?यह कैसा प्रेम है,यह कैसी नियति है कि
ज्यों ज्यों हमारा प्यार प्रगाढ़ होता जाता है, हमारी माँगे बढ़ने लग जाती
है।धीरे धीरे प्रेम अधिकार माँगने लग जाता हैं ।
जब तक दोस्ती रहती है तब तक तो सब कुछ ठीक चलते रहता है लेकिन जब दोस्ती
कुछ आगे बढती है तो वह प्रेम का रूप अख्तियार कर लेती है,और उसके बाद
अधिकारों का।
अपने साथी से प्रेम पाना भी हम अपना अधिकार समझने लगते है, शायद यहीं
कारण हैं कि प्रेमी प्रेम मे डूबने की अपेक्षा अधिकारों की लड़ाई मे खो
जाता हैं ।

आज का यूवा वर्ग इसी प्रेम नामक कब्ज से ग्रसित हैं ।जिस समय उसे अपने
भविष्य की चिंता करना चाहिए उस समय वह इस कब्ज के शिकंजे मे आ जाता है।और
फिर वह ,वह सब कुछ कर बैठता है जो उसे नहीं करना चाहिए ।
इसी प्रेम के मायाजाल में फसकर वह तनाव से ग्रसित होता है और मादक
पदार्थों को अपना हमदर्द बना लेता है।
कभी कभी वह इतना चिंतित हो जाता है कि आत्महत्या जैसा घिनौना कदम भी उठा लेता है।
आये दिनो हर रोज अखबारों और टेलीविजन पर खबर चलतें रहती हैं कि आज उस
प्रेमी युगल ने आत्महत्या कि, कल उस युवा ने प्रेमिक तनाव की वजह से
फाँसी लगाकर अपनी जान दी और भी बहुत कुछ।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आप यह सोचते है कि लड़के लड़कियों के
तनाव का कारण उनकी पढ़ाई और कैरियर हैं तो आप गलत सोचते है।
एक अध्ययन के अनुसार पता चला हैं कि मानसिक तनाव के चार में से एक मामला
प्रेम से जुड़ा हुआ हैं ।और ऐसे मामलों मे दिन प्रतिदिन वृद्धि हुये जा
रही हैं ।
इस समस्या का एक पहलू यह भी है कि आधुनिक जीवन दृष्टि ने सेक्स को प्रेम
का पर्याय बना दिया है,प्रेम एक भावनात्मक संबंध है जबकि सेक्स शरीर की
एक शारीरिक आवश्यकता मात्र भर है।
इसी हवस रूपी प्रेम की खातिर न जाने कितनी लड़कियों को अपनी आबरू शर्मशार
करनी पडी और न जाने कितने युवाओ ने आत्महत्या को आत्मसात किया।
इससे पहले कि यह प्रेम मे आत्महत्या का रोग नासूर बन जाये हमारे युवा
भाईयो और बहनों को चाहिए की वे अपनी ऊर्जा रचनात्मक कार्यो मे लगाये
क्योंकि किसी ने कहा है कि
"कह दो मीरो गालिब से की हम भी शे'र कहते है।
वो सदी तुम्हारी थी ये सदी हमारी हैं।"

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