अंधेरे से उजाले की ओर
नही जानता हूँ मै कि यह क्या है और क्यूँ हो रहा हैं?अक्सर दुरिया बनानी चाही है उससे लेकिन किसी लोहे की भाँति मै हमेशा उस चुम्बक की ओर आकर्षित हो जाता हूँ ।जानता हूँ यह छलावा है एक शीश महल जैसा जिसमे हर ओर शीशे लगे है,जिधर भी निगाह फेरो वही नजर आता है लेकिन ऐसा क्यूँ हो रहा है?क्या रिश्ता है उससे?कौन है वह जो मेरे अंतर्मन मे लगातार प्रहार किये जा है?
कभी-कभी खुद से जानने की कोशिश मे राते बीत जाती है लेकिन क्यूँ नही ढूँढ पा रहा हूँ मै उस वजह को जो बार बार मेरे मानसपटल पर प्रहार किये जा रही हैं।एक बार हो तो सहसा संभल भी जाऊँ लेकिन यह तो दैनिकता मे विद्दमान हो चुकी है कैसे इससे निजात पाऊँ?
सोचता हूँ कोई न कोई वजह जरूर होंगी लेकिन वह भी नजर नही आ रही कहीं गुम हो चुकी है शायद वह वजह भी या फिर कहीं धूमिल पडी है लेकिन मै उसे खोजने मे असमर्थ हो रहा हूँ ।
आदत सी बन चुकी है किसी सिगरेट की तरह ,हरदम होठो से ही लगाये रखना चाहता हूँ ?लेकिन क्यूँ ?
क्यूँ मै उसका इतना आदी बना जा रहाँ हूँ ,जानता हूँ कि अगर आग मे हाथ डालूँगा तो हाथ मेरा ही जलना हैं।
हरदम रेल की लाइनों की यादे जेहन में स्फुटरिट होते रहती है कि कैसे वे साथ साथ मंजिल की ओर जाती है लेकिन मिलती कभी नही,कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हो रहा है शायद?
लेकिन अब और नहीं ,वह एक दोस्त के रूप मे हरदम मेरा साथ निभाता है हर तरह से मेरे साथ खड़ा होता है और मै हूँ कि हमेशा ही उसे उलझनों मे डाले रखता हूँ ।
कभी भी नहीं सोचता की उस पर क्या बित रही होगी ।
नही नही मै इतना कठोर कभी नही बन सकता और वह भी उसके लिये जिसने हर कदम पर मेरा साथ दिया हो उसके साथ यह पागलपन कैसे कर सकता हूँ मैं ?
इतना सब कुछ करने से पहले मैने एक बार भी नही सोचा कि उस पर क्या गुजरी होंगी और फिर भी वह मेरे साथ हैं ।
नही अब और नही दोस्त अब तुझे और सताना नही चाहता अब यकीनन निकाल फेकुँगा उस सिगरेट रूपी बयार को जो हमारे पवित्र रिश्ते मे कैंसर जैसा बेहद ही खतरनाक रोग पैदा करना चाह रहा है,अब बेशक रेल की लाइनों को भी एक बार मुडना ही होगा लेकिन विपरीत दिशा मे और अब कभी अपना हाथ आग मे डालने की चेष्टा नही करूँगा मैं ।
यकीनन अब उस शीश महल को टुटना होगा जो मुझे बार बार भ्रमित किये जा रहा था।
उम्मीद है तुम एक मौका जरूर दोगे मुझे।
फिर से दोस्त बनने के लिये।
अंधेरे से उजाले की ओर
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