मै कौन हूँ ?
मै कौन हूँ ??? बचपन की आनाकानी में, या हो बेबस जवानी में। लुटती हर वक्त है वो, कश्मीर चाहे कन्याकुमारी में। यूँ तो वह माँ होती हैं, या होती है बहन किसी की, निकलती है जब दुनिया देखने, बन जाती हैं हवस किसी की। पुरुष प्रधान इस देश की, बस इतनी यहीं कहानी हैं, लालन के लिये माँ राखी के लिये बहन हमसफर के लिये पत्नी लेकिन बेटी के लिये मनाही हैं । लज्जित होना उत्पीडित होना हर दिन की उसकी दिनचर्या है, आवाज उठाओ तो बोलते हैं , तमीज से बात कर,तु मेरी भार्या है। भ्रूण हत्या से शुरूआत होती है अगर बच गयी तो जवानी मे दरिन्दो से रात चार होती है। जवानी की दहलीज पर भी बच गई तो ससुराल मे दहेज के लिये बवाल होता है और अगर वहाँ भी बवाल न हुआ तो बुढ़ापे मे अपने ही बच्चो से फिर सवाल होता है , कि सच मे मै एक महिला हूँ ।