मेरी ख़ामोशी को तुम कुछ नाम ना दो।

मेरी खामोशी को तुम कुछ नाम ना दो।
अकेला हूँ अंदर से मुझे मकान ना दो।

मेरें जिस्म की कलिश को काली रहने दो।
सफेद रंग मे रंगने का मुझे आयाम ना दो।
 

गरीबी,लाचारी,मजबूरी,मेरे बचपन के साथी हैं ।
चंद सुनहरे पल बिताकर मुझे ख्वाबो सा अंजाम ना दो।

माटी की फूटी कुटिया में मौजू किया हैं इंसाँ के साथ।
इस जर्जर शहर मे लाकर तुम मुझे हैवान ना दो।

माँ बाप और बहनों से स्वर्ग है मेरा शजर।
अनदेखे लोगों के बीच मुझे शमशान ना दो।

बेख़बर................

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