१०वाॅ विश्व हिन्दी सम्मेलन पूरी तरह साहित्य और साहित्यकारों से नदारद रहा
इस सम्मेलन मे प्रशासन ने गिने हुये सिर्फ कुछ साहित्यकारों को आमंत्रित किया था जो राजनीति से जुड़े हुये थे,उनके अलावा किसी भी साहित्यकार को सम्मेलन मे उपस्थित होने का न्योता नही दिया गया,क्या यह सही है? एक प्रश्न जो हर साहित्य प्रेमी के मन मे कौंध रहा है कि क्या साहित्यकारों का भाषा को बनाने और उसके विकास मे कोई योगदान नही है? हिन्दी भाषा को ऊचाईयो तक ले जाने वाली देश की कई अग्रिम संस्थाओ को भी इस सम्मेलन मे सिरे से खारिज कर दिया गया । साहित्य अकादमी,भारतीय ज्ञानपीठ अकादमी जिनसे हर बार विश्व हिन्दी सम्मेलन मे शामिल होने वाले लोगों की सूची मागी जाती थी इस बार उन्हें पूर्णतः हाशिए पर रखा गया। क्या यह साहित्य की तौहीन नही है? जिन लोगों ने अपनी लेखनी से भाषा को समृद्ध और परिपक्व बनाने मे अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया हो क्या उन्हें निमंत्रण नही दिया जाना चाहिए था? बात तो तब और बिगड़ जाती है जब हमारे देश के विदेश राज्यमंत्री साहित्यकारो की तौहीन मे एक ओछा बयान देते है कि लेखक आते है,खाते है पीते है और पेपर पढ़ कर चले जाते है क्या यह गलत नहीं है? किसी ने भी इस सम्मेलन मे